Thursday, June 24, 2021

Elan Vital - Sumedha Kataria Talks- 13

ऊर्जा अपरिमित श्रृंखला - त्रयोदश कड़ी



साथियों, कभी आपने सोचा है कि किन वजूहात से अपने घर के  परिवेश हमारी औरा, ऊर्जा और मूड एकदम गड़बड़ हो जाता है और हमारे तनाव का कारण बनता है, कभी कभी तो ऐसी स्थिति सुबह सुबह ही बन जाती है परिणामतः पूरे दिन की ऊर्जा असंतुलित हो जाती है. 

मुझे ऐसा लगता है अनम्यसकता को ट्रिगर करता हैँ क्लटर यानी अस्तव्यस्त पड़ी, फैली हुई चीज़ेँ (scattered, disordered) वस्तुएं जो हमारी गति या रूटीन मे बाधा डाल दें, देरी का कारण बनें या confusion create कर दें. आज की इस कड़ी मे हम मुख्य रूप से physical clutter  की ही चर्चा करेंगे. क्लटर के कई सवरुप हैँ -भौतिक या physical clutter यानी पुराने बर्तन, कपडे, बैग्स, बुक्स, पुराना फर्नीचर, गिफ्टआइटम्, पेपर्स, पैकिंगज़ यानी वो सब जिनकी एकदम वर्तमान मे आवश्यकता ही नहीं है,  पर वो हैँ.  अन्य किसमें हैँ -इमोशनल या भावनात्मक  क्लटर यानी हमारे द्वारा कैरी किये हुए नकारात्मक मानसिक प्रभाव (negative psychic impressions) शिकायतें, कुंठायें, गिलट, भय;  मनोवैज्ञानिक क्लटर यानी  हमारे पूर्वाग्रह  आशंकाऐं; मानसिक या मेन्टल क्लटर यानी हमारी अंदरूनी गांठे, बंधन जो हमारे  स्वभाव को प्रभावित करते है, हमारे व्यक्तित्व के स्वरुप का निर्माण करते हैँ. हमारी याददाश्त कभी कंप्यूटर की तरह चेतावनी नहीं देती स्पेस कवव कमी का, इसलिए हम ख्याल ही नहीं करते और भरते चले जाते हैँ भूतकाल की स्मृतियों, वर्तमान के नाहक से ख्यालों से.
क्लटर बुखार की तरह है, अगर
समय रहते इसका निस्तारण या प्रबंधन ना किया जाए तो ये बिगड़ जाता है  इतना कि हम निराश या उदासीन हो जाते हैँ कि इतने सामान का अब कुछ नहीं हो सकता, 'प्या रहे जिथे प्या रहे'.  ज़ब थोड़ा हमारा मूड सही होता है तो हम अपने आप से वायदा करते हैँ कि दो छुट्टियां मिलेंगी ना , पहला काम यही करना है घर को सही करना है या ये कि 'अब कि बार दिवाली पे जब  सफाई अभियान चलाएंगे तो फालतू का सब सामान  पक्कम्पक्का निकल देंगे', और हमारे ये वायदे नए साल के प्रॉमिसस की मानिंद जल्द ही टूट जाते हैँ. वायदे और इम्प्लीमेंटशन के अंतराल के दौरान और और और और सामान भर जाता है घर की छत पर, पिछले आँगन मे, लॉन के किसी कार्नर मे, स्टोर की ऊपर साइड पर या अलमारी के भीतर, किचन के स्टोर मे इत्यादि इत्यादि. 'क्या करें समय ही नहीं मिलता, पता नहीं छुटटी इतनी जल्दी क्यों ख़त्म हो जाती है' हमारी टालने की प्रवृत्ति हमारे परिवेश को बुरी तरह भर देती है हमारी अपनी सहमति और प्रतिभागिता के साथ! विडंबना ये है कि विक्टिम भी हम ही बनते है  जब कभी तैयार होते हुए मैचिंग चीज़ेँ, खाना बनाते हुए राशन की कोई चीज घर मे होते हुए नहीं मिलती. लबोलबाब ये कि हाथ जलने पे बरनोल नहीं मिलता, बुखार के लिए थरमामीटर.

ये क्लटर है क्या, आता कँहा से है?
Clutter is a pile of mess that needs sorting out and it has the  tendency to get out of control.

बिखरा बिखरा सा साज़ ओ सामान है
हम कंही, दिल कंही, अकीदा कंही

हमारी अनिर्णय की प्रवृति  बहुत हद तक इसके लिए ज़िम्मेवार होती है  क्यूंकि हम ये निर्णय नहीं कर पाते कि फलां चीज क्या सचमुच इतनी ज़रूरी हैकि उसे सहेजें चाहे स्थान हो ना हो. हमारी स्वाभावतः ना फेंकने की, सब संभाल के रखने की आदत का कोई तर्क नहीं है पर  क्लटर एक  वायरस की भान्ति है जिसका संक्रमण हर घर मे पाया जाता है- हमारे निजी पर्स, हमारी बेड साइड ड्रावर इसका छोटा सा उदाहरण हैँ. क्लटर गलत या बुरा नहीं समझा जाता, इसे समान्यतः घर घर की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है.  यंहा तक कि संग्रहन को लालायित मानसिकता का विरोध करने का अर्थ है, पन्गा मौल लेना, हर्ट करना, चार सुनना इसलिए क्लटर प्रत्येक घर मे निर्विरोध विजेता के रूप मे वर्चस्व रखता है.

कोरोना काल मे, क्षमा करें मुझे अगर मेरी बात बुरी लगे कि ज़ब ज़िन्दगी का भरोसा नहीं कल हो ना हो, क्या मानसिकता है जो हमें अटैच्ड रखती है क्लटर से? जफ्फा डाल के रखते हैँ हम चीज़ों को. क्या हम सचमुच ये चाहते हैँ कि हमारे द्वारा संभाला सहेजा क्लटर हमारे बाद कोई देखे फिर फेंके? मोक्ष और निर्वाण के अभिलाशी हम क्यों अनासक्त हो नहीं पाते बेवजह भरे अपने घर के सामान की भीड़ से?

सामान सौ बरस का, पल की खबर नहीं.

साथियों,अपने घर को कभी कभी पहली बार आये आगँतुक विजिटर के दृष्टिकोण से देखना, बांचना, आकलन करना बहुत ज़रूरी है क्यूंकि हमारा घर और उसका माहौल हमें परिभाषित करते है.

कुछ असाधारण प्राणी भी पाये जाते हैँ जिनके घर बहुत सुव्यवस्थित होते हैँ पर क्लटर प्रेमियों को वो सनकी प्रतीत होते है ,किसी और दुनिया से सम्बद्ध  क्यूंकि उनके अनुसार घर घर जैसा दिखने के लिए क्लटर की उपस्थिति अनिवार्य तत्व है. 

ये कहना उचित नहीं होगा कि घर की एनर्जीज केवल क्लटर की वजह से नेगेटिव होती हैँ पर ये सच है कि क्लटर हमारे मूड के ग्राफ को काफी ऊंचा नीचाँ करने का सामर्थ्य रखता है.

क्लटर मैनेजमेंट के लिए कई मेथडस प्रयोग किये जाते है फोर बैगज़ मेथड -बेकार , रखने वाली चीज़ेँ, देने वाली चीज़ेँ, रेलोकेट करने वाली वस्तुएं. एक है- keep one, leave one method यानी डुप्लीकेट वस्तुओं मे से एक रख लो, एक निकाल दो, अन्य तरीका है वर्ष भर के 365 दिन रोज़ एक  स्पेयर चीज निकालो जिसकी आप को ज़रूरत ना हो. तरीका कोई भी अपनाएं पर हाँ शुरुआत ज़रूरी है.
वो कहते हैँ ना कि हज़ारों मील के सफर की शुरुआत एक छोटे से कदम से होती है पर क्लटर मैनेजमेंट के सन्दर्भ मे
शुरुआत सबसे अधिक कठिन है. TS Eliot कहते हैँ ना :

'shall I atleast set my lands in order?'

और हमारी स्थिती Eliot के Prufrock की तरह होती है :

'And how shall i begin?'

और दुविधाओं से भरे हम टालते चले जाते है, टालते चले जाते हैँ...

'There will be time, there will be time...'

साथियों, ये नेक शुरुआत तो उस विशेष क्षण पर निर्भर करता है जब हम खुद से कहते हैँ:

'ENOUGH. NO MORE'.

'और नहीं बस और नहीं'.

चेतावनी - कभी भी क्लटर को सफा करने की शुरुआत किन्ही सेंटीमेंटल चीज़ों से ना करें.. प्लीज ऐसे मे कुछ पुख्ता सा हो ही नहीं पायेगा. यादों के जज़ीरे मे ख्याल परेशान करने लगते है कि क्या कोई हमारी भी कोई चिठ्ठी, पत्री, हमारे  हाथ का बुना, सिला, कढ़ाई किया रखेगा संभाल के.. साथियों, सच तो ये है कि हम तो ऐसे सफाई अभियान मे ख़ुद ही  घिर जाते है...अच्छा सा कोई मौसम तन्हा सा कोई आलम, स्मृतियों के गोते उस पर  अशंकित हम!  हमारा रब्ब ही जानता है कितना चुनौतीपूर्ण है क्लटर को साफ करना.

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है

अपने बीते सुन्दर वक़्त के साथ जुड़ी हमारी चीज़ेँ -अपनी निजी डायरीज, कवितायेँ, बचपने भरा लेखन जो हमें उस युग की याद दिखाती हैँ  ज़ब हम खूबसूरत थे और बहुत से अनकहे लफ़्ज़ों से तस्वीरे बनाते थे, उन दिनों की सिहरने जगाते सामान को किस करीने मे बांधे?  रहने देते हैँ यूँ ही पड़ा उसको. गुलज़ार कहते हैँ ना :

एक पुराना मौसम लौटा
याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है
वो भी हों तन्हाई भी...

21वी शताब्दी के दूसरे दशक तक आते आते क्लटर के स्वरुप मे अभूतपूर्व इज़ाफा हुआ है.वो युग अच्छा था जब चूल्हे पे खाना बनता, छत पे हारे मे दूध और डाल पकता, तंदूर मे लगती थीं रोटियां  इतने गैजेट नहीं थे, ना उनकी रेप्लसमेंट्स , ना उन से जुड़े कबाड़ इतना, पुराने चार्जेर्स, वायरज़ और ना ही होड़ थीं ऑनलाइन ये मंगाने और वो मंगाने की और फिर उनकी इतनी सशक्त पैकिंग भी फेंकना हर एक के बस की बात कँहा!! हमें भी यही लगता है जैसा शायद हमारे बारे मे हम से पहली पीढ़ी को लगता था कि इस पीढ़ी को शायद सब फेंकने की पड़ी रहती है. क्लटर की परंपरा पुश्त दर पुश्त चलायमान है कंस्यूमरिज्म की विसंगतियों के साथ.अपने सामान को देख सोच आती ही है कि जो कंही के नहीं रहते वो कँहा जाते हैँ 
आज की समस्या बहुतायत की है. हमारी समृद्धि क्लटर बन जाती है:

जिसको खुश रहने के सामान मय्यसर सब हों
उसको खुश रहना भी आये ये ज़रूरी तो नहीं..

जब जो चाहिए चीज वो होते हुए भी ना मिले तो  सम्पन्नता मे अभाव की सी फीलिंग होती है. कचरा भी सही सहेज के रखा जाता है तो रिसोर्स कहलाता है  और हमारी बेशकीमती चीज़ेँ हम क्लटर बना के पड़ा रहने देते हैँ क्यूंकि साथियों, कंही हमारी समृद्धि तंगदिली मे महफूज़ रहती है. ज़रा सा सहेजी चीज़ों को किसी और को देने मे हमें लगता है जैसे हमारा खजाना खो जायेगा. निदा फज़ली के शब्दों मे :

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है...

साथियों , समस्या ये है कि थ्री R सिद्धांत अपनाने मे हम नाकामयाब हो चुके है  Reduce नहीं कर पाते खरीददारी, Reuse हमारी शान के खिलाफ है, Recycle मे आड़े आती है कमी वक़्त की है.. वक़्त सचमुच कम है, बेशकीमती भी. 

डी क्लटर करना हो या क्लियर करना हो क्लटर , सबसे पहले ज़रूरी है उसका स्वीकार, मौजूदगी कि हैँ क्लटर्ड हमारहा परिवेश, हमारे घर kw माहौल पे है क्लटर का ग्रहण चाहे दबा छिपा. उस स्वीकार से ही  संभव है समाधान और सुखद परिवर्तन. इस बात के निर्णायक हम स्वयं ही हैँ कि क्या क्या हमारी ऊर्जा को क्षीन करता है या उसे बढाता है और सनद रहे साथियों, क्लटर जागरूकता का विकसित होना प्रशस्त करता है मार्ग उस से बचाव का, उसके प्रबंधन का. 

साथियों, क्लटर के प्रति अवेयरनेस निहायत निहायत ज़रूरी है और एहत्यात भी कि कंही ये क्लटर हमारी मानसिकता को ना दबोच ले कि हम इस के साथ राज़ी राज़ी रहने लगे. सतत जागरूकता ना केवल हमें क्लटर फैलाने से रोक सकती है बल्कि अपने परिसर को क्लटर फ्री करने मे सहायक बन सकती है.अगर क्लटर सुरसा के मुख की मानिंद है तो हमारे इरादे को भी हनुमानजी की भान्ति उस से दोगुना होना होगा तभी हम अपनी अच्छी एनर्जीज को क्षतिग्रस्त होने से बचा सकते हैँ .

सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ..

जैसे योगा मे मशक्क्त करने के बाद जब शव आसन की बारी आती है तो ट्रेनर कहते हैँ एकदम ढीला छोड़ के, महसूस कीजिये.. की हुई एक्सरसाइजस का प्रभाव आपके शरीर पे- यकीन मानिये क्लटर जब कम कर पाते हैँ तो उसके बाद कुछ ऐसी ही सुकून बख्श अनुभूति होती है. बड़ा ज़रूरी है अपनी मेहनत के लिए खुद को साधुवाद देना, खुद को ट्रीट देना जिस से खुशी मिले, उपलब्धि का एहसास हो और हम रह सकें उर्जित चार्जित बिंदास, प्रफुलित.

2 comments:

  1. Very good mam i will try n share b krugi

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  2. Thanks mam muje aap se milne ka avser b mila the 2016 me aur aaj MAA THANDI CHAN KITAB MILI H JO AAP KE DWERA HI DI HUI H AUR VHI SE HE AAP KE BLOOG PET AAE HUN ME YE SAB LIKHTE HUE B BDI KHUSHI MAHSUS KR RHI HUN

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