Thursday, June 24, 2021

Elan Vital - Sumedha Kataria Talks- 2

ऊर्जा अपरिमित श्रृंखला - दूसरी कड़ी


साथियों, क्या कभी हमने सोचा है हम चाहते क्या हैँ? सोचते तो ज़रूर हैँ कि हम ये चाहते हैँ, वो मिल जाये, ये पा लें हम इत्यादि इत्यादि. सबसे पहले तो ये जानना बहुत ज़रूरी है कि जो हम चाहते हैँ क्या हमने उसे सकारात्मक जामा पहनाया है या नकारात्मक. उदाहरणत्य हम सब चाहते हैँ समान्यतः कि हम खूब खुश रहें, समृद्ध हों, आनंदित हों, सौहार्द और स्नेह से भरे हों हमारे सम्बन्ध.. बस, हर सुख सुविधा हो और शान्ति हो जीवन में. सही?

पर जो हम चाहते हैँ क्या हम उसे भावों में ढालते हैँ कभी? क्या हम अपनी इच्छाओं को अपनी वाइब्रेश्नज /ऊर्जा में आत्मसात करते हैँ कि अगर हम खुश होंगे, समृद्ध होंगे, हमारे सम्बन्ध स्नेह परिपूर्ण होंगे तो हम कैसा महसूस करेंगे? Have we ever tried to inhale that feeling of joy we would feel when all our hearty desires are fulfilled, granted by Almighty?

मुझे ऐसा लगता है कि वो सब जो हम शिद्दत से चाहते हैँ वो कंही हम अपने भीतर किसी दर्द की मानिंद खुद से भी छिपा के  मन के गहन तरीन कोने में समेट के रख भर लेते हैँ, प्रिय होती हैँ हमें वो सब चीज़ेँ जो हम चाहते हैँ, हमारे ख्वाबों की मानिंद भीतर तरीन पलती हैँ वो. शायद ऐसे ही जैसे वो एक गीत है ना...'हर दर्द हमने अपना अपने से भी छिपाया ..'

दूसरी और हम रोज़ मर्रा कि ज़िन्दगी में जो अभिव्यक्ति देते हैँ,  अमूमन हम ऐसा कहते हुए सुने जा सकते हैँ....कंही मैं बीमार ना पड़ जाऊं, कंही हॉस्पिटल ना जाना पड़ जाए, कंही कर्ज़ा ना लेना पड़े, कंही मेरी बेइज़्ज़ती ना हो जाए.

जैसे हमने कंही बाहर जाना है तो सबसे पहले हमारा डर निकल के आता है, 'रब्बा कोई एक्सीडेंट ना हो जाए' या हमारे किसी प्रिय ने परिजन ने कंही दूर जाना है, महत्वपूर्ण काम से है तो भी मन में दुआएँ तो होती हैँ पर डर उस से भी ऊपर 'कंही कुछ हो ना जाए, ऐसा ना हो कि काम ना हो' , क्या ये सच नहीं है?.

ऐसा अगर सचमुच होता है तो साथियों रुकिए,सोचिये अपनी अभिव्यक्तियों को क्रिटिकली बांचने का प्रयास करें , अपने शब्दों का, भावों का आलोचनात्मक विश्लेषण करना ज़रूरी है उनका कि जो शब्द हम प्रयोग कर रहे हैँ वो पोज़िटिव हैँ या नेगेटिव? सोचिये कंही हम अपनी नकारात्मक भावों से या नेगेटिव अभिव्यक्ति से अपने लिए न्योता तो नहीं दे रहे नेगेटिविटी को. हम ऐसा भी तो महसूस कर सकते हैँ कि 'राज़ी ख़ुशी वापिस आ रहे हैँ, काम बन गया है'- वो ख़ुशी भी तो महसूस कर सकते हैँ ना.

हम अगर सचमुच अच्छा चाहते हैँ कि हमारे साथ सही हो, हम स्वस्थ हों, अमीर हों, भाग्यशाली हों, खुश हों तो हमें अपने  में इन भावों को सकारात्मक शब्दावली देनी होंगी और ज़ुबान पे भी ये सुनिश्चित करना होगा कि हम क्या कह रहे हैँ, कंही वो उस से उलट तो नहीं जो हम चाहते हैँ. बच्चों को अक्सर 'बुद्धू, नालायक' कह देते है हम-हो सकते है वो इसी भाव को आत्मासात कर लें..अगर हम उन्हें शाबाशी वाले भाव देंगे तो उनका उत्साह वर्धन होगा वो वैसा ही करना चाहेंगे कि शाबाशी मिले, है ना ऐसा?

बात डरने की नहीं है , हाँ चौकन्ने होने की ज़रूर है क्यूंकि हम जैसी एनर्जीज को, अपनी वाइब्रेशन्स के माध्यम से यूनिवर्स में भेजते हैँ वो कई गुना हो के हमारे पास लौट के आती हैँ. Rhonda Byrne की किताब 'द सीक्रेट' या जो विताली की Law of attraction में भी यही प्रदत्त है कि हम जैसी affirmations देंगे वैसे ही भावों को हम  अपनी और आकर्षित करेंगे.

एक बात बताऊँ? वास्तव में मैं भी बहुत नेगेटिव शब्दों का इस्तेमाल करती रही बहुत उम्र तक और ये मुझे तब एहसास हुआ जब मैंने एनर्जी के बारे में, एनर्जी की आकर्षण करने कि क्षमता के बारे में जान ना शुरू किया तो मुझे लगा सच! हम स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैँ!! और फिर मैं आसपास के सब के शाब्दिक अभिव्यक्तियों की विवेचना शुरू की तो पाया कि हम सब ऐसा ही करते हैँ... चाहते तो अच्छा हैँ पर ज़ुबान पे या मन में हमारे उसके विपरीत भाव पालते हैँ- 'मैं तो ऐसी ही हूँ',  'अब मेरा कुछ नहीं हो सकता',  'मेरे साथ ही हमेंशा बुरा क्यों होता है', 'मेरा तो खुशी पे कोई हक़ है ही नहीं', 'मेरे कर्ज़े तो मेरे साथ ही ख़त्म होंगे' , 'मैं डिप्रेशन में जा रही हूँ, ऍम सिंकिंग' - और ये सिलसिला अंत हीन है. जबकि हम जो है हमारे पास, दाता की इनायतों के रूप में, उसे भी तो देख सकते हैँ,  शुकराने के भाव के साथ जी सकते हैँ..

We are blessed by everything,
everything we look upon is blest...

समथिंग गुड इन एवरीथिंग का भाव....

अल्लामा इक़बाल का शिकवा  जवाबी शिकवा  जो इंसान और खुदा के बीच का संवाद है उस में खुदा के जवाब की पहली पंक्तियाँ हैँ :

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताकते परवाज़ मगर रखती है
(Those words which are expressed  from the core of the heart have an effect, they may not have wings but they have the power to reach God...)

हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि हमारे अलफ़ाज़ सकारात्मक हों, हमारे भावों के साथ, स्वपनो के साथ मिल खाते हों.. जिसे हम कहेँगे कि हमारी affirmations का positive होना निहायत ज़रूरी है. हम चाहते हैँ अगर एक्सेल करना, मेरिट में आना तो सोच से ये ये डर निकालना ज़रूरी है कंही मैं फेल ना हो जाऊं.

ब्रह्माण्ड की ऊर्जा जिसे किसी भी स्वरुप मे मानते हों हम  इष्ट, खुदा, दाता को लाइटली नहीं लेना चाहिए, वो तो

दिल की हर लर्ज़ीशे मुजतर पे नज़र रखते हैँ
वो मेरी बेखबरी की भी खबर रखते हैँ

ये सब होने विचारों, भावों और अभिव्यक्तियों के बारे मे ज़िम्मेवार होने की और इंगित करता है. हम जैसा महसूस करते हैँ, दिल से, हम वैसा ही भाव आकर्षित करते है. अगर हम सकारात्मक परिणाम चाहते हैँ तो हमें अपने भावों को भी पॉजिटिव सांचे में ढालना है और अभिव्यक्ति को भी.

No comments:

Post a Comment