तुमने तो जन्मा था मुझे
तरोताज़ा, तंदरुस्त
अपना बनने की सलाहियत से भरपूर
और पंख दिए उड़ने को आज़ाद
कि मैं करूं
मैं करूं तो सही ज़रूर
अपने लिए
सुंदर,सलोने मुस्तकबिल का आगाज़;
पैर दिए नन्हे नन्हे पर मज़बूत
और थाम भी लिया
मेरी छोटी छोटी अँगुलियों को
कि मैं तो बस चलूँ,
रचूं नया इतिहास;
दिया धमनियों में बहता
स्वस्थ लहू कि लिखूं मैं
एक नया वर्क , बस करूं इक नया वर्क शुरू;
तुमने तो दे डाले स्वप्न भी सुनहले
कि मैं
स्वप्निल रंगों से
अपना आज बुनूं;
तुमने तो जन्मा था मुझे-आज ही के दिन
झेल कर ओह कितनी भयंकर प्रसव पीड़ा
कि मैं बस जन्मूं, हर हाल में जन्मूं, ज़रूर जन्मूं;
तुमने दी मुझे आँखें
देखने को चार सू
और दी ज़हानत मुझको
कि मैं आसमान का सितारा बन चमकूं, खिलूँ;
तुमने दिए मुझे हाथ सबल
कि मेहनतकश सी हो पहचान मेरी
और मैं तराशूं जीवन अपना
अपनी ही पहचान बनूँ;
तुमने दिया सर मुझको
कि मैं इसे उठा के जीयूं;
हाँ दिया तुमने दिल मुझको..अपना ही निकाल के
कि चाहे तम आये या ग़म आये
या हो रात अँधेरी
मैं तो बस अखंड जोत सी जलूं;
और दे दी पञ्च तत्वों से बनी
पूरी पूरी रूह मुझको
कि मैं अधर्म , बुराई और अनैतिकता की दीखती,
प्रतीत होती जीत से न डरूं;
दिया तुमने मुझे जिगर वज्र सा
कि आँधियों, तूफानों, ज़लज़लों को
तुम्हारी ही तरह कुछ भी न समझूं
और शुभ कर्मों से कबहूँ न टरूं ;
माँ,
मेरे जन्म से ही तो हुआ जन्म तुम्हारा भी तो !!
बरस हुए जन्मे चाहे मुझे कितने ही
पर सच है कि सोच के आज भी तुम्हे
मैं अश्कों से भरूँ;
आशीष दे माँ, फिर से दे दे बोसा मुझको
न झुकूं, न डरूं, न रुकूं,
मैं तो बस्स चलूँ, चलूँ..
चलती रहूँ ...
अद्भूत अपनापन
ReplyDeletethanks Parveen, so quick to comment!! regards
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है. सब के मनं की बात जैसे.
ReplyDeleteसच कहूँ तो स्वयं माँ बन ने के बाद ही जाना, समझा क्या है माँ होना. तब कंही रुक कर देखा कि कैसे दृश्य अदृश्य सुरक्षा चक्र सी साथ रहीं वो सदा. अब अपनी बेटियों में अपना बचपन और आपका प्यार जीती हूँ. माँ, मैं आप सरीखी माँ होना चाहती हूँ.
its very nice mam
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