Tuesday, May 30, 2023

कौन हूँ मैं, मैं हूँ कौन..

 

वेद एवं पुराणों में बताया गया है कि सृष्टि की रचना हुई तो जीवन के लिए पांच तत्वों की उत्पत्ति हुई.  ब्रह्मांड के निर्माण में पांच तत्वों की अहम भूमिका है। वह पांच तत्व हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। इन पांच तत्वों को वेद भाषा में पंचतत्व कहा जाता है। इसी से आत्मा और शरीर की उत्पत्ति होती है।

स्वाभाविक रूप से हम इन तत्वों की आभा और ऊर्जा से प्रभावित होते हैँ. यदि हम नेचर से जुड़ कर अच्छा मेहसूस करते हैँ तो कंही इस स्नेह की वजह भी अंदरूनी होती है. आसमान का खुलापन, हवा की ताजगी, अग्नि की मूलभूत आवश्यकता, समंदर का फैलाव और धरती द्वारा हमें थामे रखा जाना हमारी चेतना के भिन्न स्तरों पर अलग अलग डिग्री मे हमें मुत्तासीर करता है. हम कैसी भी मनस्थिति मे हों, प्रकृति के रूबरू होना हमें भाता ही है.  शायद इसी कनेक्ट के कारण ही कभी कभी आसमान, हवा,  अग्नि,समंदर,  धरती से संवाद की स्थिति भी बनती है जँहा कुछ हमअपना उन से  बाँट पाते हैँ, और कभी हम उनका कहा कुछ सुन पाते हैँ .

ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपसे शेयर करना चाहूँगी जो मैंने 'सुना' या महसूस किया. सबसे पहला प्रयास था मेरा काव्य संकलन 'धरा उवाच : इदम् न मम्' जो 2015 प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक का लिंक भी इस पोस्ट के नीचे शेयर कर रही हूँ. कुछ रचनाएं जो आसमान ( आकाश तत्व ) क़ो ले के उद्धरित हुई, वो आपके समक्ष प्रस्तुत हैँ:

मैं आसमान
जानता हूँ सब
भाता है सबको
मेरा भी मौन ही.
मुझसे सवाल करते हो तुम
उत्तर खुद ही तलाश लेते हो मुझसे
कभी दाता क़ो उलाहना भी देते
मेरे ही माध्यम से,
दूर चले गए अपनों से संवाद का
कंही मैं ही मीडियम
पर
सच बताना,
भाता है ना तुम्हे
खुद क़ो देना सुविधाजनक उत्तर..
और
मेरा मौन??


मैं आसमान
सुदूर तक वर्चस्व मेरा
जिधर देखो नज़र आता मैं ही मैं ही मैं
मैं आसमान
नहीं मोहताज़ किसी बाने का
नहीं निर्भर किसी आँचल की छाया का
नहीं.. नहीं.. नहीं.. मैं ताकता
ओढ़ाने क़ो मुझे कुछ भी..
बचाने क़ो मुझे किसी भी आपदा से व्यथा से,
शीतता से,ठिठुरन से
सुलगते सूरज से, भीषण गर्मी से
पाले से,आंधी से, तूफ़ान से
नही नहीं...
बादल मिलते गले मुझे तो
बस रो पड़ता हूँ
धूप ऐसे मे आती निकल तो
इंद्रधनुष बन खिल उठता हूँ
कंही समझते हैँ वो मेरी पीड़ा..
पर तुम क्या जानो
तुम्हे मतलब सिर्फ खुद से.
मैं आसमान..

मैं आसमान
फ़ैला हुआ
तुम्हारे सपनो की मानिंद
तुम्हारी उड़ानों जितना ऊंचा
तुम्हारे ख्वाबों जितना सुन्दर
कभी चुनौती
कभी स्वतंत्रता बोध
कभी बाहें फैलाये
अपना सा लगता हूँ ना मैं तुम्हे
आह्वाहन सा?
मैं आसमान..


मैं आसमान
उतना ही दूर तुमसे
जितना तुम महसूसो..
तुम्हारी सुबह से दोपहर
दोपहर से शाम से रात तक
सच बताओ, क्या मैं नहीं साथ?
फिर भी नज़र भर देखो तो सही मुझे
मैं तरस जाता हूँ...
स्नेह से निहारो तो सही..
इंतज़ार सी रहती है..
मैं साथ तुम्हारे हर पल, हर क्षण
पर क्या तुम भी
हो मेरे साथ
यूँ ही?

मैं आसमान
गवाह हूँ
अस्तित्व का
धरा के वजूद मे आने का
समंदरों के फैलने का
हाँ, मैं साक्षी 
अग्नि के प्रज्वलयमान होने का
वायु के तिरने का
मैं गवाह
फिर भी
मुझे सिद्ध करना पड़ता है
कि मैं हूँ
रियल, असल, सच..

मैं आसमान
मैंने देखा है
प्रकृति का हर रंग आते जाते
बदलते हुए मौसमों के संग
देखा है मैंने धरा क़ो
करते परिक्रमा सूरज की
जिसका मैं भोग्य
दिन, रात, दिन बन कर
मैंने महसूस किया है
करीब से बादलों का
घेर लेना मेरा चार सू..
ढक लेना मुझे और बरस पड़ना
कभी यूँ ही चादर सी बन
ढाम्प लेना मुझे
मैंने देखा है
कभी इंद्रधानुशू अर्धाकार भी
नवाजता है मुझे
कभी डूबते उभरते सूरज की लालिमा
कर देती है सराबोर मुझे
सब दिखते मुझ मे
मैं भी देखता सब सब..
होते हुए
चुपचाप.. निशब्द..
मैं आसमान..

बड़ी मुद्दत बाद आपसे  मुखातिब हूँ, उम्मीद है Reflections हमारे कनेक्ट क़ो पुनःस्थापित करने मे मददगार होगा, आपके कमेंटस का इंतेज़ार रहेगा.


https://drive.google.com/file/d/0B_lMSeqPJgbDTEFTUzZYWWJhcHFOcFBHVTlEYWN5Q3ZVY2hj/view?usp=drivesdk&resourcekey=0--C2VpAJF1qR_5hwg6jvSUQ