वेद एवं पुराणों में बताया गया है कि सृष्टि की रचना हुई तो जीवन के लिए पांच तत्वों की उत्पत्ति हुई. ब्रह्मांड के निर्माण में पांच तत्वों की अहम भूमिका है। वह पांच तत्व हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। इन पांच तत्वों को वेद भाषा में पंचतत्व कहा जाता है। इसी से आत्मा और शरीर की उत्पत्ति होती है।
स्वाभाविक रूप से हम इन तत्वों की आभा और ऊर्जा से प्रभावित होते हैँ. यदि हम नेचर से जुड़ कर अच्छा मेहसूस करते हैँ तो कंही इस स्नेह की वजह भी अंदरूनी होती है. आसमान का खुलापन, हवा की ताजगी, अग्नि की मूलभूत आवश्यकता, समंदर का फैलाव और धरती द्वारा हमें थामे रखा जाना हमारी चेतना के भिन्न स्तरों पर अलग अलग डिग्री मे हमें मुत्तासीर करता है. हम कैसी भी मनस्थिति मे हों, प्रकृति के रूबरू होना हमें भाता ही है. शायद इसी कनेक्ट के कारण ही कभी कभी आसमान, हवा, अग्नि,समंदर, धरती से संवाद की स्थिति भी बनती है जँहा कुछ हमअपना उन से बाँट पाते हैँ, और कभी हम उनका कहा कुछ सुन पाते हैँ .
ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपसे शेयर करना चाहूँगी जो मैंने 'सुना' या महसूस किया. सबसे पहला प्रयास था मेरा काव्य संकलन 'धरा उवाच : इदम् न मम्' जो 2015 प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक का लिंक भी इस पोस्ट के नीचे शेयर कर रही हूँ. कुछ रचनाएं जो आसमान ( आकाश तत्व ) क़ो ले के उद्धरित हुई, वो आपके समक्ष प्रस्तुत हैँ:
स्वाभाविक रूप से हम इन तत्वों की आभा और ऊर्जा से प्रभावित होते हैँ. यदि हम नेचर से जुड़ कर अच्छा मेहसूस करते हैँ तो कंही इस स्नेह की वजह भी अंदरूनी होती है. आसमान का खुलापन, हवा की ताजगी, अग्नि की मूलभूत आवश्यकता, समंदर का फैलाव और धरती द्वारा हमें थामे रखा जाना हमारी चेतना के भिन्न स्तरों पर अलग अलग डिग्री मे हमें मुत्तासीर करता है. हम कैसी भी मनस्थिति मे हों, प्रकृति के रूबरू होना हमें भाता ही है. शायद इसी कनेक्ट के कारण ही कभी कभी आसमान, हवा, अग्नि,समंदर, धरती से संवाद की स्थिति भी बनती है जँहा कुछ हमअपना उन से बाँट पाते हैँ, और कभी हम उनका कहा कुछ सुन पाते हैँ .
ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपसे शेयर करना चाहूँगी जो मैंने 'सुना' या महसूस किया. सबसे पहला प्रयास था मेरा काव्य संकलन 'धरा उवाच : इदम् न मम्' जो 2015 प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक का लिंक भी इस पोस्ट के नीचे शेयर कर रही हूँ. कुछ रचनाएं जो आसमान ( आकाश तत्व ) क़ो ले के उद्धरित हुई, वो आपके समक्ष प्रस्तुत हैँ:
मैं आसमान
जानता हूँ सब
भाता है सबको
मेरा भी मौन ही.
मुझसे सवाल करते हो तुम
उत्तर खुद ही तलाश लेते हो मुझसे
कभी दाता क़ो उलाहना भी देते
मेरे ही माध्यम से,
दूर चले गए अपनों से संवाद का
कंही मैं ही मीडियम
पर
सच बताना,
भाता है ना तुम्हे
खुद क़ो देना सुविधाजनक उत्तर..
और
मेरा मौन??
मैं आसमान
सुदूर तक वर्चस्व मेरा
जिधर देखो नज़र आता मैं ही मैं ही मैं
मैं आसमान
नहीं मोहताज़ किसी बाने का
नहीं निर्भर किसी आँचल की छाया का
नहीं.. नहीं.. नहीं.. मैं ताकता
ओढ़ाने क़ो मुझे कुछ भी..
बचाने क़ो मुझे किसी भी आपदा से व्यथा से,
शीतता से,ठिठुरन से
सुलगते सूरज से, भीषण गर्मी से
पाले से,आंधी से, तूफ़ान से
नही नहीं...
बादल मिलते गले मुझे तो
बस रो पड़ता हूँ
धूप ऐसे मे आती निकल तो
इंद्रधनुष बन खिल उठता हूँ
कंही समझते हैँ वो मेरी पीड़ा..
पर तुम क्या जानो
तुम्हे मतलब सिर्फ खुद से.
मैं आसमान..
मैं आसमान
फ़ैला हुआ
तुम्हारे सपनो की मानिंद
तुम्हारी उड़ानों जितना ऊंचा
तुम्हारे ख्वाबों जितना सुन्दर
कभी चुनौती
कभी स्वतंत्रता बोध
कभी बाहें फैलाये
अपना सा लगता हूँ ना मैं तुम्हे
आह्वाहन सा?
मैं आसमान..
मैं आसमान
उतना ही दूर तुमसे
जितना तुम महसूसो..
तुम्हारी सुबह से दोपहर
दोपहर से शाम से रात तक
सच बताओ, क्या मैं नहीं साथ?
फिर भी नज़र भर देखो तो सही मुझे
मैं तरस जाता हूँ...
स्नेह से निहारो तो सही..
इंतज़ार सी रहती है..
मैं साथ तुम्हारे हर पल, हर क्षण
पर क्या तुम भी
हो मेरे साथ
यूँ ही?
मैं आसमान
गवाह हूँ
अस्तित्व का
धरा के वजूद मे आने का
समंदरों के फैलने का
हाँ, मैं साक्षी
अग्नि के प्रज्वलयमान होने का
वायु के तिरने का
मैं गवाह
फिर भी
मुझे सिद्ध करना पड़ता है
कि मैं हूँ
रियल, असल, सच..
मैं आसमान
मैंने देखा है
प्रकृति का हर रंग आते जाते
बदलते हुए मौसमों के संग
देखा है मैंने धरा क़ो
करते परिक्रमा सूरज की
जिसका मैं भोग्य
दिन, रात, दिन बन कर
मैंने महसूस किया है
करीब से बादलों का
घेर लेना मेरा चार सू..
ढक लेना मुझे और बरस पड़ना
कभी यूँ ही चादर सी बन
ढाम्प लेना मुझे
मैंने देखा है
कभी इंद्रधानुशू अर्धाकार भी
नवाजता है मुझे
कभी डूबते उभरते सूरज की लालिमा
कर देती है सराबोर मुझे
सब दिखते मुझ मे
मैं भी देखता सब सब..
होते हुए
चुपचाप.. निशब्द..
मैं आसमान..
जानता हूँ सब
भाता है सबको
मेरा भी मौन ही.
मुझसे सवाल करते हो तुम
उत्तर खुद ही तलाश लेते हो मुझसे
कभी दाता क़ो उलाहना भी देते
मेरे ही माध्यम से,
दूर चले गए अपनों से संवाद का
कंही मैं ही मीडियम
पर
सच बताना,
भाता है ना तुम्हे
खुद क़ो देना सुविधाजनक उत्तर..
और
मेरा मौन??
मैं आसमान
सुदूर तक वर्चस्व मेरा
जिधर देखो नज़र आता मैं ही मैं ही मैं
मैं आसमान
नहीं मोहताज़ किसी बाने का
नहीं निर्भर किसी आँचल की छाया का
नहीं.. नहीं.. नहीं.. मैं ताकता
ओढ़ाने क़ो मुझे कुछ भी..
बचाने क़ो मुझे किसी भी आपदा से व्यथा से,
शीतता से,ठिठुरन से
सुलगते सूरज से, भीषण गर्मी से
पाले से,आंधी से, तूफ़ान से
नही नहीं...
बादल मिलते गले मुझे तो
बस रो पड़ता हूँ
धूप ऐसे मे आती निकल तो
इंद्रधनुष बन खिल उठता हूँ
कंही समझते हैँ वो मेरी पीड़ा..
पर तुम क्या जानो
तुम्हे मतलब सिर्फ खुद से.
मैं आसमान..
मैं आसमान
फ़ैला हुआ
तुम्हारे सपनो की मानिंद
तुम्हारी उड़ानों जितना ऊंचा
तुम्हारे ख्वाबों जितना सुन्दर
कभी चुनौती
कभी स्वतंत्रता बोध
कभी बाहें फैलाये
अपना सा लगता हूँ ना मैं तुम्हे
आह्वाहन सा?
मैं आसमान..
मैं आसमान
उतना ही दूर तुमसे
जितना तुम महसूसो..
तुम्हारी सुबह से दोपहर
दोपहर से शाम से रात तक
सच बताओ, क्या मैं नहीं साथ?
फिर भी नज़र भर देखो तो सही मुझे
मैं तरस जाता हूँ...
स्नेह से निहारो तो सही..
इंतज़ार सी रहती है..
मैं साथ तुम्हारे हर पल, हर क्षण
पर क्या तुम भी
हो मेरे साथ
यूँ ही?
मैं आसमान
गवाह हूँ
अस्तित्व का
धरा के वजूद मे आने का
समंदरों के फैलने का
हाँ, मैं साक्षी
अग्नि के प्रज्वलयमान होने का
वायु के तिरने का
मैं गवाह
फिर भी
मुझे सिद्ध करना पड़ता है
कि मैं हूँ
रियल, असल, सच..
मैं आसमान
मैंने देखा है
प्रकृति का हर रंग आते जाते
बदलते हुए मौसमों के संग
देखा है मैंने धरा क़ो
करते परिक्रमा सूरज की
जिसका मैं भोग्य
दिन, रात, दिन बन कर
मैंने महसूस किया है
करीब से बादलों का
घेर लेना मेरा चार सू..
ढक लेना मुझे और बरस पड़ना
कभी यूँ ही चादर सी बन
ढाम्प लेना मुझे
मैंने देखा है
कभी इंद्रधानुशू अर्धाकार भी
नवाजता है मुझे
कभी डूबते उभरते सूरज की लालिमा
कर देती है सराबोर मुझे
सब दिखते मुझ मे
मैं भी देखता सब सब..
होते हुए
चुपचाप.. निशब्द..
मैं आसमान..
बड़ी मुद्दत बाद आपसे मुखातिब हूँ, उम्मीद है Reflections हमारे कनेक्ट क़ो पुनःस्थापित करने मे मददगार होगा, आपके कमेंटस का इंतेज़ार रहेगा.
Great creation of poetry. After going through the lines one feels himself in the lap of nature.
ReplyDeleteWith all regards.
Jai Parkash Sharma, Advocate
Thanks a lot. Regards
Delete🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteThanks Vikas. Regards
Delete🙏🙏
ReplyDeleteThanks Sandeepji. Regards
Deleteकमाल... आपके आसमान में ना जाने कितने तारे है... Share करते रहिये ताकी हमारी ज़िन्दगी झिलमिला उठें...
ReplyDeleteकमाल... आपके आसमान में ना जाने कितने तारे है... Share करते रहिये ताकी हमारी ज़िन्दगी झिलमिला उठें... ( it's me... Not anonymous...)
ReplyDeleteThanks Vimalaji. Regards
DeleteWow !! Wow Mam, Wonderful Poetic Creation of Nature. You made us visualise face to face talk with Aasman ( Sky ) , which is rarest work. Through these multiple small poems , we could not only hear but also peep into the inner depth of The personified Aasman. Many Congrats n Best Wishes 💐 for ur new beginning after a break. We 'll eagerly wait ur next Creation🙏 Regards -- Sunita Gupta , State n National Awardee
ReplyDeleteThanks Sunitaji. Regards
DeleteSumedha dear , so good to see you after a long gap. आसमान - कितने रूप बखान कर दिये इस के। A beautiful creation. All the very best.
ReplyDeleteThanks Ranju. Regards
Deletewaha mam, great, prakariti ka bhut hi manmohak charitar chitran kiya aapne, super duper👌👌👌
ReplyDeleteThanks Mr Satish. Though you have not added your name here, Got your whatsapp, too. Regards
DeleteBeautiful and imaginative description of limitless, endless and ever changing canvas of color, the sky , and our emotions, feelings and innermost thoughts .
ReplyDeleteThanks. I wish you had written your name ,too. Regards
DeleteBeautiful ji very well.described our thoughts ,emotions and feelings
ReplyDeleteWow kya baat h Di aap great ho 👍👌🌹
ReplyDeleteReflections के माध्यम से बहुत अर्से बाद आपसे जुड़ना अच्छा लगा, बहुत सी यादें ताज़ा कर गया। ' धरा उवाच ' की कई कवितायें भी ज़हन में उभर कर आईं, इनमें प्रकृति का मानवीकरण सुन्दर रूप में आपके द्वारा किया गया है---'बादलों का घेर लेना मुझे और बरस पड़ना' आदि अत्यंत मर्मस्पर्शी हैं। आशा करती हूँ, भविष्य में जल्दी जल्दी आपकी लेखनी से यह कालम सुशोभित होगा।
ReplyDeleteWow..Such a beautiful piece. Loved it 👌👌👌.. Regards Amita Kochhar
ReplyDeleteAbsolutely amazing...how the sky is both the Self and the witness to the Self....
ReplyDeleteYour are our inspiration madam 🙏
ReplyDeleteSuch a beautiful method of nature disscribe एक आसमान ही होता है जब हम किसी भी स्थिति में उसकी ओर देखते है और अपने God ko yaad krte hai 🙏
ReplyDeleteBeautifully explained the different expression about sky
ReplyDeleteAmazingly beautiful
ReplyDeleteBeautiful nice to hear from you after long time
ReplyDeleteWell discribed
Beautiful thoughts worded so wonderfully! Every stanza carrying myriad of inner explanations and meanings! How explicitly woven into each other!
ReplyDelete“Poetry is an echo, asking a shadow to dance.” - Carl Sandburg.
ReplyDeleteStrong, accurate, interesting words, well-placed, make us feel the writer's emotions and intentions.
You hve depicted THE different shades of Limitless SKY so beautifully. I love to read it again and again.
Please go on showering your love to all of us,
We are lucky enough to see you back again.
Thanks and Regards
“Poetry is an echo, asking a shadow to dance.” - Carl Sandburg.
ReplyDeleteStrong, accurate, interesting words, well-placed, make the reader feel the writer's emotions and intentions.
You have described so beautifully the different shades of limitless SKY.
Pl keep on showering your love and blessings by sending us your valuable thoughts.
Thanks n regards 🙏🙏
Beautifully designed the various shades of limitless sky.
ReplyDeleteSpeechless
लंबे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति सुखद है
ReplyDeleteSui ki knock Se Lekar Aasman Ke Aseem vishalta ka itna Gyan Koi aapse Jyada bata hi NahiSakta super super se bhi Upar no words regards
ReplyDeleteThanks. I wish you had written your name ,too. Regards
ReplyDeleteGreat dii…language creation superb 💐💐💐
ReplyDeleteDeep.. Connects directly to heart 💕
ReplyDeleteअपना सा लगता हूँ ना मैं तुम्हे
ReplyDeleteआह्वाहन सा?
It seems the author has the universe in her heart....... and writing aasmaaan ki kahaani..... apni zubaani..... Charan sparsh..... 🙏