कौन हूँ मैं, मैं हूँ कौन
के निरंतर मे...
पंच तत्वों मे आकाश के बाद है वायु तत्व. पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी वायु जीवन अस्तित्व बनाये रखने हेतू अतीव अहम् है. प्राण वायु मानव शरीर की जीवनतता का एक मात्र प्रमाण है और वैयक्तिक परिधि से बाहर वायु की शुद्धता या प्रदूषण का परिमान हमारी ज़िन्दगी मे स्वास्थ्य का मापदंड!
कैशौर्य काल मे ज़ब सुना था ' मैं हवा हूँ, कँहा वतन मेरा / दश्त मेरा, ना चमन मेरा..' (अमीक हनीफी का कलाम अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन द्वारा गाया) तो अजब सी हुम् हुम् हुई थीं. बरसात के मौसम मे कभी पगलाती सी हवा भी अक्सर बेचैन सी लगती है. जब विदेश गयी तो ' पश्चिम के पाले से पाला पड़ा ' तो सच, अलग अलग हवा के प्रकारों से वर्ष भर रूबरू कराता अपना वतन बहुत याद आया. अबोहर की 'हनेरी' तो कभी कुरुक्षेत्र मे ब्रह्मसरोवर की शांत लहरों क़ो उद्वेलित करती किसी सांझ की हवा या समंदर के सानिध्य मे अपने वजूद से वाबस्ता कराती हवा मे कंही समीप्य मेहसूस किया है जिसका स्वरुप जो भी बना शब्दों मे, यथावत प्रस्तुत है:
मैं हवा हूँ ...
अचरज भरी ये बात है
पर सच
कि मैं मौजूद हूँ
हर जगह
पर बस, कोई नहीं अस्तित्व मेरा.
जीवन का तंत मुझ से
श्वास का आवागमान मैं ही तो
पर अनदेखा अनजाना वजूद मेरा.
मेरा होना-
महत्त्व हीन;
मेरा ना होना
जताता-
कौन हूँ मैं!
मैं हवा हूँ..
मैंने कभी जाना ही नहीं
कैसा होता है रुकना,
थम जाना.
मैंने तो जाना है-
आकार,
प्रकार,
अहंकार,
तीव्रता,
गतियों की..
मैं हवा हूँ..
रुकना,
ठहर जाना
नहीं मेरी फितरत;
चलना, चलायमान रहना
मेरी नियति.
मैं हवा हूँ..
बदलते मौसम
बदल देते हैँ पहचान मेरी.
ठण्ड बना देती है 'पाला' मुझको
गर्मी, आंधी
समुन्दरी तापमान -'तूफ़ान', 'सुनामी'
बरसात संग भला लगता है मुझे
भीगना,
भिगोना...
घुलमिल सा जाता है वजूद मेरा
मस्ताती बारिश मे;
चक्रवातों मे व्यथित, मजबूर
दिखाती विनाशलीला भी.
सर्दियों की धूप से
छतीस का आंकड़ा है मेरा!
पर तुम्हे?
भली लगूँ या बुरी
तुम्हारे मूड और मिजाज़ पे है.
मैं हवा हूँ..
तुमने कभी देखा नहीं ना मुझे-
मेरा रंग, कलेवर, स्वरुप?
तुमने
सिर्फ जाना है
होना मेरा
तुम्हारे भीतर, बाहर,
यत्र तत्र सर्वत्र
अदृश्य मैं!
कभी जड़ी नहीं गयी फ्रेम मे,
चित्रकारी मे,
सुर सब मुझसे ही पाते वजूद
पर मुझे गाया नहीं गया कभी भी.
हर चेतन,जड़ मेरा साम्राज्य..
बस मैं ही
ना जड़, ना चेतन
मात्र महसूसन भर!
मैं हवा हूँ...
जँहा भी
ज़रा सी भी हो
घुटन
मेरी याद आती है...
हल्का सा भी
ज़हर
जो भर देते हो तुम
मुझ मे
तड़पाने लगता है मुझे
और तुम्हे भी
कर देता है बेबस,
बेहाल !!!
शहरों से दूर चले आते तुम
मिलने मुझको
मैं निहाल!!
सुनो, मैं कह नहीं पाती
दर्द अपना
जो भोगती हूँ
तुम्हारी पीड़ा मे.
तुम बचा पाओ
खुद क़ो
और बचाना चाहो
मुझे भी-
यही दुआ मेरी.
मैं हवा हूँ...
मुझे भाती है स्वछँदता
बेलाग, मस्त, बेरोक चलना,
तिरना,
बहना...
मुझे प्रिय है
अपना स्वतंत्रय सुख..
हाँ, कभी कभी भूल जाती हूँ मैं
दायित्व अपना.
अपनी मस्ती मे
हो जाता है उल्लंघन
हदों का,
क्षेत्र का,
गति सीमा का.
क्या करूँ, एकाकी मैं
अपने वर्चस्व की आकांक्षा मे
ना चाहते भी
हो जाती हूँ
संवेदनविहीन!
मुझे क्षमा करना, प्लीज़..
पर
अपनी बेचैनी क़ो
सिर्फ मैं जानती हूँ
और कोई नहीं..
और कोई भी नहीं.
मैं हवा हूँ...
अक्सर मैं मूक बन
विचरती हूँ
यंहा से वंहा..
निशब्द
धारे मौन....
पर तुम सुन पाते हो
मेरी बेचैनी का कृन्दन..
मेरी ख़ुशी का इज़हार..
मेरी पीड़ा की तासीर भी...
माज़रत फरा हूँ..
मैंने नहीं चाहा
पहुँचाना कोई शोर तुम तक
चाहा है..
यकीन मानो, चाहा है तो बस
रहना सिर्फ मौन..
सिर्फ सिर्फ मौन...
मैं हवा हूँ...
मैं हवा
तुम्हारे समीप
प्यार की छुअन मानिंद
हौले से जताती एहसास अपना
और तुम्हारा
महसूसती
गुदगुदाना..
मैं हवा सब जानती हूँ
कब तुम चुपचुप
कब मस्त वोकल..
कब चाहते तिरना..
बहना
कब यूँ ही खुश खुश
देखती तुम्हारा
खिलखिलाना..
मैं हवा
सब समझती
तुम्हारे भीतर की
सुगबुगाहट
संवेदनाओं की थरथराहट..
बस यूँ ही हमेशा हमेशा
पहुँच जाता मुझ तक
जो चाहते तुम शिद्दत से
छुपाना
अश्क़, सुबकन, रुदन, विलाप...
क्यूंकि मैं
तुम मे ही तो विचरती
प्राण वायु.
मैं हवा हूँ...
मैं हवा
कभी कभी सफल
तुम्हे सहलाने मे
हौले से जैसे
प्यार की मौन पुकार
तुम तक पहुँचाने मे.
रूमनियत की बन खुशबू
रिझाती तुम्हे अक्सर
सुदूर से जैसे बन संदेसा
ले आती तुम्हारे लबों पे मुस्कान
और बन जाती तुम्हारी
मख़सूस पहचान.
मैं हवा
तुम सँग, तुम मे
जैसे ना कोई भी दूजा कोई!!
बस सुना नहीं
कभी भी कहा हो
तुमने
मुझे
'थैंक यू '.
अदभुत 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआप सच में ही बहुत प्रभावशाली महान इंसान है।
ReplyDeleteATI Sundar
ReplyDeleteAmazing...
Thanks thanks thanks 😌👍
सुमेधा बहुत बहुत धन्यवाद आज एक और तत्त्व से मिलवाने का - हवा। एक महतपूर्ण एवं खूबसूरत रचना। हार्दिक बधाई आपको 🙏
ReplyDeleteExcellent stream of conciousness
ReplyDeleteहवा हवा है औऱ आप great हो...
ReplyDeleteअति उत्तम महोदया
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आप द्वारा लिखित कविता पढ़ी।जैसे ही आपका मैसेज देखा एक अलग सा सुकून सा मिला।कौतूहल हुआ ।फिर पढ़ा अच्छा लगा।आपके भावों में गहनता छिपी है।आप हमेशा से मेरे लिए द बेस्ट है और हमेशा रहेंगी।आपको मेरा शत शत नमन
हवा हवा है औऱ आप great हो...
ReplyDeleteVery Nice...
ReplyDeleteFabulous di…👌
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