Friday, June 23, 2023

मैं अग्नि

मैं अग्नि

नियंत्रण मे

भली लगती
अनियंत्रित,
आवारा
मैं बन जाती
भस्मासुर..
मैं अग्नि.


मैं अग्नि
सुलगती
किसी स्वप्न से,
ख्वाब से,
चाह से,
धधकती जूनून बन कर
पा लेने क़ो आतुर
ताबीर ख्वाबों की.
मैं अग्नि
मकसद की ललक भी हूँ,
पाने की तीव्रता भी
बाज़ी दफा
बुझना
होता ही नहीं
सुलभ
मुझको...
मैं अग्नि.


मैं आंच भी हूँ,
ताप भी,
तड़प भी हूँ,
संताप भी.
मैं ज्वाला भी हूँ,
कभी दीप्त राख़ भी,
जोत भी मैं ही हूँ,
आस की लौ भी..
भला लगता है मुझे
उम्मीद बन
जलते रहना...
मैं अग्नि.


मैं अग्नि
शिकायत बन
सुलगती हूँ,
क्रोध बन भड़कती हूँ,
 आक्रामक बन
भस्म कर देती
तन मन,
सजा बन
ख़ाक कर देती
मैं अग्नि...

मैं अग्नि
हवा संग मिल
मचा सकती हूँ
तांडव..
धरा संग मिल कर
हो जाती शांत
एकदम शांत..
पानी फेर देता
मेरे मनसूबों पे पानी..
मैं अग्नि
अकेली ही हूँ काफी
जलने
जलते रहने क़ो
ता उम्र...

मैं अग्नि
जिजीविषा जीवित मुझसे ही
पथरों से रगड़ के
जाना मुझको मानव ने
और अपनाया..
अपने हितार्थ
कहते 'गुड सर्वेंट, बैड मास्टर' मुझको
मैं जलूँ तो ही सुलभ
भोजन
ताप
प्रकाश
दैविकता का एहसास
और मोक्ष भी!
जलना
फितरत मेरी
जलाना
तुम्हारी ज़रूरत.


मैं अग्नि
मेरी पहचान?
क्रोधाग्नि ?
अग्नि परीक्षा...?
ईर्ष्या अग्नि?
निर्भर
तुम पे
अपने
अस्तित्व के लिए..
मैं अग्नि.


तुम चाहे प्रयोग करो मुझे
जीवनयापन हेतु
या सफा करने क़ो
जंगल
खेत
झुग्गियां...
तुम चाहे दो मुझे मान
जोत प्रदीप्त करके
यज्ञ से
गा के
'अग्निमीळे पुरोहितं..'
मैं कभी तुम्हारे
सुख
ख़ुशी
Saddism
कभी
भीतरी ऊर्जा का स्त्रोत
मैं अग्नि
तुम्हारी चाह से
पाती
अर्थ अपना..


कभी कभी
नहीं सहार पाती
मैं अपने अहं पर वार
और ख़ाक होने की
प्रबल इच्छा लिए
सच,
जल कर हो जाती राख़ मैं
पर सच,
कभी कभी
अपनी ही राख़ से
उठ के
करना पुनः जीवन धारण
मेरी नियति..
मैं अग्नि....


अक्सर मैं जलती हूँ
उम्मीद बन कर
दिल मे
मोहब्बत बन कर
आँखों मे
अभिव्यक्ति बन
स्पर्श मे
अक्सर मैं जलती हूँ
पूरा पूरा
भरा पूरा वजूद बन कर
असहनीय...
पीड़ा मे
मैं अग्नि....


मैं अग्नि
आश्रित भी हूँ
हवा पे
धरा पे
भला लगता है
मुझे
बनना रौशनी
ऊर्जा
मैं अग्नि
निर्भर हूँ
बेचारी नहीं.

13 comments:

  1. Great poetry of fire and light. Light of divine knowledge.
    With best wishes and all regards.
    Jai Parkash Sharma, Advocate

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  2. Brilliant... not to forget...
    और कभी अग्निसाक्षी बन दिलों में लौ जगाये रखूं...

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  3. Nirbhar hun bechari nahi... 😍

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  4. 👍"pani pher deta,mere munsoobon pe pani" kya khoob kaha hai aapne" sunder likhte ho.🙏🙏

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  5. कितना सुन्दर और सटीक लिखा है आपने, बहुत खूब 👌👌

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  6. Bahut hi sunder . बिना अग्नि के कुछ भी संभव नहीं है ना बात ना हालात न जुनून , ना जज्बात । बहुत खूब मैम बहुत सुंदर व्याख्यान

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  7. बहुत गहराई है आप में और आपकी अभिव्यक्ति में भी...

    'कभी कभी
    अपनी ही राख़ से
    उठ के
    करना पुनः जीवन धारण
    मेरी नियति..
    मैं अग्नि....'

    यही तो करना है।अगर राख भी हो गए तो फिर फिर उठना है नए जोश के साथ...
    क्योंकि

    'जोत भी मैं ही हूँ,
    आस की लौ भी..
    भला लगता है मुझे
    उम्मीद बन
    जलते रहना...'

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  8. Umdaa.......speechless....
    Good Servant Bad Master......

    bin Agni....
    na Baat
    Naa haalaat
    Na junoon
    Na jazbaat.....

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  9. अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्
    How can a person paint one's thoughts.....with words.......regards namaste

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  10. What a beautiful rendition of your thoughts. Worth listening again and again……

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  11. अग्नि के विविध स्वरूपों और आयामों का गहन चित्रण और विवेचन! (दिनेश दधीचि)

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  12. Aas ki ummed ki lo 'AGNI'🙏🙏

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